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"हां सहर हूँ मैं" दिनों का उजाला और रातों

"हां सहर हूँ मैं"
         दिनों का उजाला और रातों का पहर हूँ मैं,
          मृदु सागर सींच फसलों वाला नहर हूँ मैं।
                        "हां सहर हूँ मैं"
        लिखता हूँ शायरी और ग़ज़लें,गीत गाता हूँ,
      मोहब्बतों से मोहब्बत की कविता सुनाता हूँ।
               गंगा सी ऊंची-नीची लहर हूँ मैं,
                        "हां सहर हूँ मैं"
            नई सोच व दृष्टिकोण लेकर चला हूँ मै,
          सूरज की तरह तप्त अग्नि में जला हूँ मैं।
               पर्वत की तरह अडिग ठहर हूँ मैं।
                         "हां सहर हूँ मैं"
      छंदों की कविता और गीतों का मुखड़ा बनकर,
      चला हूँ इस सफर में चांद का टुकड़ा बनकर।
                 ग़ज़लों का इक बहर हूँ मैं 
                         "हां सहर हूँ मैं" ◆#nojotolucknow
◆#shayri
◆#love
◆#poetry
◆#ghazal
"हां सहर हूँ मैं"
         दिनों का उजाला और रातों का पहर हूँ मैं,
          मृदु सागर सींच फसलों वाला नहर हूँ मैं।
                        "हां सहर हूँ मैं"
        लिखता हूँ शायरी और ग़ज़लें,गीत गाता हूँ,
      मोहब्बतों से मोहब्बत की कविता सुनाता हूँ।
               गंगा सी ऊंची-नीची लहर हूँ मैं,
                        "हां सहर हूँ मैं"
            नई सोच व दृष्टिकोण लेकर चला हूँ मै,
          सूरज की तरह तप्त अग्नि में जला हूँ मैं।
               पर्वत की तरह अडिग ठहर हूँ मैं।
                         "हां सहर हूँ मैं"
      छंदों की कविता और गीतों का मुखड़ा बनकर,
      चला हूँ इस सफर में चांद का टुकड़ा बनकर।
                 ग़ज़लों का इक बहर हूँ मैं 
                         "हां सहर हूँ मैं" ◆#nojotolucknow
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