जनसंख्या वृद्धि विस्फोटक है, कब फट जाए,सबको खतरा है। फल फूल रही बेकारी,बेग़ौरी, इंसानियत हुई कतरा-कतरा है।। ऐसे हो रहे असहिष्णु मंजर, दृश्य देख मानवता काँपती । आगे की कहानी कैसा होगी पारखी आँखें भविष्य भाँपती ।। दाने-दाने पर होंगे रण, इंच-इंच पर रक्त बहेंगे । एक-एक ,दो-दो नौनिहाल , अति का प्रहार कैसे सह लेंगे।। जागो-जागो सत्ता दीवानों , समय रहते कोई नीति बनालो। अनियंत्रित बहता जन-लावा रोको, कुछ करो और अस्तित्व बचालो ।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश जरूरी हैं