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|| श्री हरि: || 10 - आर्त 'बाबूजी! आज तो आप कहीं न

|| श्री हरि: ||
10 - आर्त
'बाबूजी! आज तो आप कहीं न जायें।' कोई नीचे से गिड़गिड़ा रहा था। उसका लड़का बिमार था और उसकी दशा बिगड़ती जा रही थी। आज कम्पाउंडर आया नही था। अस्पताल बंद रखना कल शाम को निश्चित हो चुका था वृद्ध डाक्टर अपने मकान में ऊपरी तल्ले में बैठे अपनी लड़की से श्रीमद्भागवत का बंगला अनुवाद सुन रहे थे।

'मैं डाक्टर हूँ बेटी! स्निग्ध स्वर में उन्होंने कहा, 'मेरी आवश्यकता हिंदू-मूसलमान को समान रूप से है। कोई इस बुड्ढे को मारकर क्या पावेगा?'

'उत्तेजना मनुष्य को पिशाच बना देती है।' दूर से 'अल्लाहो-अकबर' का कोलाहल सुनायी पड़ने लगा था। 'दादा कलकत्ते गये और पूरे दो सप्ताह हो गये, लौटे नहीं। मैं अकेली रह जाऊँगी यहां। नहीं, आप इस दंगे के समय कहीं नहीं जा सकते।' पिता के हाथ के हैंडबैग को पकड़ लिया उसने।
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

|| श्री हरि: || 10 - आर्त 'बाबूजी! आज तो आप कहीं न जायें।' कोई नीचे से गिड़गिड़ा रहा था। उसका लड़का बिमार था और उसकी दशा बिगड़ती जा रही थी। आज कम्पाउंडर आया नही था। अस्पताल बंद रखना कल शाम को निश्चित हो चुका था वृद्ध डाक्टर अपने मकान में ऊपरी तल्ले में बैठे अपनी लड़की से श्रीमद्भागवत का बंगला अनुवाद सुन रहे थे। 'मैं डाक्टर हूँ बेटी! स्निग्ध स्वर में उन्होंने कहा, 'मेरी आवश्यकता हिंदू-मूसलमान को समान रूप से है। कोई इस बुड्ढे को मारकर क्या पावेगा?' 'उत्तेजना मनुष्य को पिशाच बना देती है।' दूर से 'अल्लाहो-अकबर' का कोलाहल सुनायी पड़ने लगा था। 'दादा कलकत्ते गये और पूरे दो सप्ताह हो गये, लौटे नहीं। मैं अकेली रह जाऊँगी यहां। नहीं, आप इस दंगे के समय कहीं नहीं जा सकते।' पिता के हाथ के हैंडबैग को पकड़ लिया उसने। #Books

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