"वो इक झलक" उत्सव था उस पल में, मोक्ष की प्राप्ति थी, 'वो इक झलक' ही तो थी, जो इतनी पवित्र, इतनी निश्छल, इतनी सात्विक थी| स्मरण करूँ उसे बार-बार, दर्पण में भी वो ही दिखे हर बार, मैं छोड़ कर घर-बार और व्यापार, 'वो इक झलक' का ही कर रहा हूँ दीदार| साक्षात तुम खड़ी थी कुछ दूर मुझसे, मीमांसा तुम्हारी लग रही थी गले मुझसे, आलिंगन में हमारे साये समाए थे, 'वो इक झलक' लिए तुम रेगिस्तान में पानी की बूंद से आए थे| निःसंकोच हो, मैं तुम्हारी सौंदर्यता में डूब चुका था, लावण्य देख तुम्हारी, मैं खुद को ही भूल चुका था, उत्कर्ष इसका मैंने बस इतना निकाल लिया, 'वो इक झलक' को अलौकिक मैंने मान लिया| मीमांसा- reflection लावण्य- grace, beauty. उत्कर्ष- climax अलौकिक- Divine #ufvoices #yqdidi #वोइकझलक #vineetvicky #marchdiaries #hindipoetry