रात का सफऱ बेहिसब जगा हु मंजिल की तलाश मे दरबदर भटका हु बंदिश-ऐ-गुलाम सा हैँ सफऱ हर दफा हर रहा मे दुवा सा किये जा रहा हु आर्य "अधूरा" #दुवा