वर्तमान -एक सच कुबड़ी की राजनीति सब कुछ गटक रही हैं। नेकी बनी बिचारी दर-दर भटक रही हैं।। छल से फरेब से अब सब काम चल रहे हैं, रावण बहुत हुए तो श्री राम खल रहे हैं, तलवार धूर्तता की सब पर लटक रही हैं। नेकी बनी बिचारी दर-दर भटक रही हैं।। दिखते हैं दाँत जितने एक भी न काम के हैं, वो ही टिके हुए हैं जो सिर्फ दाम के हैं, इंसानियत गिरी थी अब सर पटक रही हैं। नेकी बनी बिचारी दर-दर भटक रही हैं।। दुनियाँ लपक रही है हर पाप की कमाई लेकिन अगर कहोगे होगी बड़ी बुराई, मगरूर बेहयाई जुल्फें झटक रही हैं। नेकी बनी बिचारी दर-दर भटक रही हैं।। बढ़ने लगी धरा पर यारों ठगी की शक्ति बेहाल विद्वताएँ करती नही जो भक्ति सच की कलम शिवानी सबको खटक रही हैं।। नेकी बनी बिचारी दर-दर भटक रही हैं।। ©डॉ.शिवानी सिंह