विरह से प्रेम ख़ास, विलक्षण तो होता ही, विरह में प्रेम की असल समृद्धि है । "तुम्हारे प्रेम के पश्चात शेष रह गई मात्र मेरी विरह पीड़ाएं हां वही वेदना जिसे, तुम छोड़ गए हो मेरी स्मृतियों में, हां बहुत पीड़ा होती है अब मेरे हृदय के समीप, किंतु तुम्हें क्या लगा ये वेदना