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कर्म करो कर्मठ बनो जग में कर्म से ही मंजिल को पाओग

कर्म करो कर्मठ बनो जग में कर्म से ही मंजिल को पाओगे। 
हाथों की लकीरों के फेर में फंसकर जीवन व्यर्थ गवाओंगे। 

अपनी किस्मत के रचयिता तुम खुद ही इसका निर्माण करो।
लकीरें तो बनती बिगड़ती रहती है तुम ना इसका भान करो।

लकीरों में भाग्य नहीं होता है तुम खुद से ही पहचान करो।
मानव जीवन मिला है तो तुमको खुद से कुछ काम करो।

हाथों की लकीरें करती है भ्रमित ना जीवन में व्यवधान करो।
कुछ पल की दिलासा देती है तुम ना इनके चक्कर में पड़ो। 🎀 Challenge-278 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 8 पंक्तियों में अपनी लिखिए।
कर्म करो कर्मठ बनो जग में कर्म से ही मंजिल को पाओगे। 
हाथों की लकीरों के फेर में फंसकर जीवन व्यर्थ गवाओंगे। 

अपनी किस्मत के रचयिता तुम खुद ही इसका निर्माण करो।
लकीरें तो बनती बिगड़ती रहती है तुम ना इसका भान करो।

लकीरों में भाग्य नहीं होता है तुम खुद से ही पहचान करो।
मानव जीवन मिला है तो तुमको खुद से कुछ काम करो।

हाथों की लकीरें करती है भ्रमित ना जीवन में व्यवधान करो।
कुछ पल की दिलासा देती है तुम ना इनके चक्कर में पड़ो। 🎀 Challenge-278 #collabwithकोराकाग़ज़

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