कुंडलिया छंद विद्यालय हैं गली - गली, मिले नहीं आचार। शिक्षा अजी मकसद कहाँ,मकसद है व्यापार। मकसद है व्यापार , फीस लेते मनमानी। ऊँची है इमारत , नहीं ज्ञान की निशानी। शिक्षा की बयार अब, कौन दिशा में है चली। लुटने को विद्यालय , बन रहे हैं गली- गली।।३।। #कुंडलिया_छंद #विश्वासी