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हलचल कह दूँ तुम्हे जो मन में है आज, या गुमसुम रहू

हलचल

कह दूँ तुम्हे जो मन में है आज,
या गुमसुम रहूँ निशात में राहों की तरह,
कर लूं इज़हार ख्वाबे इश्क का सनम आज,
कुबूल कर लोगे क्या बिछड़े पंछी के जोड़े की तरह।

मन मंदिर में नित बजती हैं घंटियाँ,
न मैं जानू नित पर्व क्यों मनाए,
क्या तुम्हारे इश्क की हैं ये खूबियाँ,
या मौसमे बहार अपना रुतबा मनाए। 

शायद आशिकी का असर ऐसा होता है,
शान्त दिखते हैं जो पहाड़ दूर से,
उनमें कई करिश्मों का चलन होता है,
हलचल मन में, चेहरे पर नूर होता है।।
 #कोराकागज़ #कोराकाग़ज़जिजीविषा #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकागज़विशेषप्रतियोगिता
हलचल

कह दूँ तुम्हे जो मन में है आज,
या गुमसुम रहूँ निशात में राहों की तरह,
कर लूं इज़हार ख्वाबे इश्क का सनम आज,
कुबूल कर लोगे क्या बिछड़े पंछी के जोड़े की तरह।

मन मंदिर में नित बजती हैं घंटियाँ,
न मैं जानू नित पर्व क्यों मनाए,
क्या तुम्हारे इश्क की हैं ये खूबियाँ,
या मौसमे बहार अपना रुतबा मनाए। 

शायद आशिकी का असर ऐसा होता है,
शान्त दिखते हैं जो पहाड़ दूर से,
उनमें कई करिश्मों का चलन होता है,
हलचल मन में, चेहरे पर नूर होता है।।
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