आँखें न होती तो कहाँ नजर आता फूल सब कुछ काला होता लगता जैसे सब हो फिजूल इन्द्रियों से ही यह तन है वरना हो जैसे मिट्टी की धूल मन की जगह पता नहीं बदन में जो ही रचता सच, झूठ, उल जुलूल ©Kamlesh Kandpal #bdn