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ज़िंदगी का बाज़ार बाजार सज चुका था। जरूरत और मनोरंज

ज़िंदगी का बाज़ार

बाजार सज चुका था। जरूरत और मनोरंजन के साजो सामान से दुकाने भरी हुई थी। हर दुकानदार अपना सामान बेचने के लिए ग्राहक को खुश करने में लगा हुआ था। ग्राहक भी अपनी मनपसंद चीज खरीदने के लिए कोई भी कीमत देने के लिए तैयार थे। बस फर्क सिर्फ इतना था कि सभी ग्राहकों को अपनी मनपसंद या जरूरत की चीज खरीदने के लिए बोली लगानी पड़ती थी और जिस ग्राहक की बोली सबसे अधिक होती थी, उस चीज पर उस ग्राहक के नाम का ठप्पा लगा दिया जाता था।

 Day:8

बाजार सज चुका था। जरूरत और मनोरंजन के साजो सामान से दुकाने भरी हुई थी। हर दुकानदार अपना सामान बेचने के लिए ग्राहक को खुश करने में लगा हुआ था। ग्राहक भी अपनी मनपसंद चीज खरीदने के लिए कोई भी कीमत देने के लिए तैयार थे। बस फर्क सिर्फ इतना था कि सभी ग्राहकों को अपनी मनपसंद या जरूरत की चीज खरीदने के लिए बोली लगानी पड़ती थी और जिस ग्राहक की बोली सबसे अधिक होती थी, उस चीज पर उस ग्राहक के नाम का ठप्पा लगा दिया जाता था।

ऐसे ही एक जगह दुकान सजी हुई थी और लोग बोली लगा रहे थे। कोई कम बोली लगा रहा था तो कोई ज्यादा लेकिन उस दुकानदार का सामान अभी तक नहीं बिका था।

बोली खत्म होने का इंतजार कर रहा था कि तभी एक ग्राहक उसकी दुकान पर आया और बोला-“तुमने जो सामान हमे छह महीने पहले दिया था, अब वो हमारे किसी काम का नहीं। तुम इसको बदल कर कुछ नया सामान दिखाओ। तुम्हें वाजिब दाम मिलेगा।
ज़िंदगी का बाज़ार

बाजार सज चुका था। जरूरत और मनोरंजन के साजो सामान से दुकाने भरी हुई थी। हर दुकानदार अपना सामान बेचने के लिए ग्राहक को खुश करने में लगा हुआ था। ग्राहक भी अपनी मनपसंद चीज खरीदने के लिए कोई भी कीमत देने के लिए तैयार थे। बस फर्क सिर्फ इतना था कि सभी ग्राहकों को अपनी मनपसंद या जरूरत की चीज खरीदने के लिए बोली लगानी पड़ती थी और जिस ग्राहक की बोली सबसे अधिक होती थी, उस चीज पर उस ग्राहक के नाम का ठप्पा लगा दिया जाता था।

 Day:8

बाजार सज चुका था। जरूरत और मनोरंजन के साजो सामान से दुकाने भरी हुई थी। हर दुकानदार अपना सामान बेचने के लिए ग्राहक को खुश करने में लगा हुआ था। ग्राहक भी अपनी मनपसंद चीज खरीदने के लिए कोई भी कीमत देने के लिए तैयार थे। बस फर्क सिर्फ इतना था कि सभी ग्राहकों को अपनी मनपसंद या जरूरत की चीज खरीदने के लिए बोली लगानी पड़ती थी और जिस ग्राहक की बोली सबसे अधिक होती थी, उस चीज पर उस ग्राहक के नाम का ठप्पा लगा दिया जाता था।

ऐसे ही एक जगह दुकान सजी हुई थी और लोग बोली लगा रहे थे। कोई कम बोली लगा रहा था तो कोई ज्यादा लेकिन उस दुकानदार का सामान अभी तक नहीं बिका था।

बोली खत्म होने का इंतजार कर रहा था कि तभी एक ग्राहक उसकी दुकान पर आया और बोला-“तुमने जो सामान हमे छह महीने पहले दिया था, अब वो हमारे किसी काम का नहीं। तुम इसको बदल कर कुछ नया सामान दिखाओ। तुम्हें वाजिब दाम मिलेगा।
akankshagupta7952

Vedantika

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