आदमी मुसाफिर है आता है जाता है आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है! झोंका हवा का, पानी का रेला मेले में रह जाए जो अकेला वो फिर अकेला ही रह जाता है आदमी...........! क्या साथ लाये, क्या छोड़ आये रस्ते में हम क्या-क्या भूल आये मंजिल पे जाके याद आता है आदमी...........! रोती है आँखे, जलता है ये दिल जब फैंके अपने ही घर के दिये से आँगन पराया जगमगाया है आदमी.......! कब छोड़ता है ये रोग जी को जब भूल जाता है दिल किसी को वो भूलकर भी याद आता है आदमी.........! ©अंजलि जैन #आदमी मुसाफिर है#लता जी का गाया गीत#फ़िल्म अपनापन#बहुत प्यारा गीत२८.०९.२०