ये वक्त बिते दौर का तसव्वर दिखा गया लौटी खिजा बहार पे शदाबे फजा गया हर रोज आंधियों ने हिफाजत हो जिसकी की वो शख्स जाने किस कदर अश्कों मे बह गया अब चंद फासलो पे क्या आवाज दें दरम्यां फासलों से दौर-ए-वफा गया चंद रोज नयी बयार से रु-ब-रु क्या हुए कौम-ए-अजीम से आदाब-ए-हुनर गया महक सोंधी इत्र की उठती नहीं जमीन से पूराने लोग क्या गये,दौरे-कद्र चला गया राजीव Karma Lakshmi singh Nehu❤