उड़ गया गुब्बार बन पुलिंदा झूठे वादों का तोड़े से भी क्यूँ टूटता नहीं है क़फ़स यादों का आके देख तो सही हश्र तेरे तोताचश्म इरादों का ख़ैर करे मौला मुस्तक़बिल में हाल पर क़र्ज़ माज़ी की मुरादों का टूटे दिल की आहों के बोझ से कम होता है बोझ जनाजों का उड़ गया गुब्बार बन पुलिंदा झूठे वादों का तोड़े से भी क्यूँ टूटता नहीं है क़फ़स यादों का आके देख तो सही हश्र तेरे तोताचश्म इरादों का