जगती हूं मैं रोज़ सुबह सौ आशायें लेकर... और हर आशा से मैं जी उठती हूं..., प्रतिक्षण ढ़लते सूरज संग मैं धीरे-धीरे... अंतर्मन के अंतर्द्वंद से जूझती जाती हूँ .., भरा हुआ है शून्य सजल नवल ज्योति से... और नव स्वप्न नयन भार हैं लिये हुए..., नव पीड़ा, नव सृजन, नव अश्रु कोमल... निज हिय निरंतर हैं अड़े हुए ...., मन जिज्ञासा खोज की..ज्यों मृग खोजे कस्तूरी... जीवन प्रश्न के हल त्यों ही..मैं भी खोजती रहती हूँ। ©Sonam Verma #FindingOneself#Searching#JourneyOfLife#sacrifices