इश्क़ करूँ या खुद आशिक़ी बन जाऊं। इबादत करूँ या खुद बंदगी बन जाऊं। किसी और के तो लिए जी कर देख लिया है मैंने। अब तो दिल करता है मैं खुद की ज़िंदगी बन जाऊं। इश्क़ करूँ.......... दूसरों के लिए गम बहुत सहे है मैंने। किसी को ख़ुशी के पल बहुत दिये है मैंने। पर क्यों अब भी आँखों में नमी है। सोचता हूँ अब ख़ुद की ख़ुशी बन जाऊं। इश्क़ करूँ....... जो मिला बो सब पर निछार कर दिया। एक पत्थर की मूरत को निखार भी दिया। पर अब बो मेरे पास तो नहीं। सोचता हूँ खुद की दिल्लगी बन जाऊं। इश्क़ करूँ........ सुबह भी उसे दे और शाम को नाम लिख दिया। ज़मी तो दे दी उससे आसमान भी लिख दिया। मेरे लिए तो अब एक क़दम की जगह नहीं है। सोचता हूँ खुद की ज़मी बन जाऊं। इश्क़ करूँ.......... इश्क़ करूं या आशिक़ी बन जाऊं 💕🥀