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थोड़ी समझदार,थोडी़ नासमझ तो थोड़ी सी नादान हुं तु

थोड़ी समझदार,थोडी़ नासमझ 
तो थोड़ी सी नादान हुं
तुम जिस नजरिये से देखो मुझे
मैं वैसी ही किरदार हुं
मस्त मौला सी पकडी़ जिंदगी की डोर
मैं क्यों दिखाऊं कीसी को अपने अंदर का शोर
मुस्कुराहट रखती हुं चेहरे पर अपने
मैं बनावटी हंसी नहीं हंसती
किसी के तारीफों की मोहताज नहीं
मैं खुद में ही रहती,मैं खुद को ही जंचती
मैं हर किसी के लिए तो अच्छी नहीं
मगर चंद लोग हैं जिंदगी में
जिनकी मैं जान हुं
थोड़ी समझदार,थोड़ी नासमझ
तो थोड़ी सी नादान हुं।

©Garima Srivastava
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