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“महफ़ूज़” (ग़ज़ल) MEHFOOZ (Ghazhal) महफ़ूज़ नहीं हूँ घ

“महफ़ूज़” (ग़ज़ल)
 MEHFOOZ (Ghazhal)

महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी,
उसकी यादों से आहत हूँ,
हरपल कसक यही दिल में,
क्या मैं भी उसकी चाहत हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी...

सोच के उसको आँख लगे,
और दिल भी उसी को याद करे,
छेड़ती सपनो में हर दिन,
क्या मैं भी उसकी शरारत हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी...

मेरे मन का कोना-कोना,
बस उसकी दरकार करे,
वो तो सुकूँ है दिल का,
पर क्या मैं भी उसकी राहत हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी...

पूछूँ उसके क्या है दिल में,
यह निर्णय है अब तो मन में
मेरे दिल की धड़कन है वो,
क्या मैं उसके दिल की आहट हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी,
उसकी यादों से आहत हूँ।

- ©  Samrat Verma महफूज़ | Mehfooz
ग़ज़ल | Ghazal
© सम्राट वर्मा
“महफ़ूज़” (ग़ज़ल)
 MEHFOOZ (Ghazhal)

महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी,
उसकी यादों से आहत हूँ,
हरपल कसक यही दिल में,
क्या मैं भी उसकी चाहत हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी...

सोच के उसको आँख लगे,
और दिल भी उसी को याद करे,
छेड़ती सपनो में हर दिन,
क्या मैं भी उसकी शरारत हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी...

मेरे मन का कोना-कोना,
बस उसकी दरकार करे,
वो तो सुकूँ है दिल का,
पर क्या मैं भी उसकी राहत हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी...

पूछूँ उसके क्या है दिल में,
यह निर्णय है अब तो मन में
मेरे दिल की धड़कन है वो,
क्या मैं उसके दिल की आहट हूँ ?
महफ़ूज़ नहीं हूँ घर में भी,
उसकी यादों से आहत हूँ।

- ©  Samrat Verma महफूज़ | Mehfooz
ग़ज़ल | Ghazal
© सम्राट वर्मा
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