अधूरा संस्मरण Full Read in caption आज भी वो सारे मंजर मुंह जबानी याद है जब तुम हमे अपना कहती थीं........ न जाने क्यों....? तुम हमे एकाएक यूं एकाकी कर चली गई याद आता है तुम्हारे साथ छुपकर की हुई बाते याद आता है हर त्योंहार के बहाने तुम्हारा सामान लेने निकलना और उसी दुकान पर मेरा होना अच्छा लगता था जब तुम अपनी सहेली की बात न मानकर मेरे इशारों में बताए कपड़े खरीद लेती थी