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तुम्हें याद है बारिश की वह रात जब हम एकसाथ भीगे थ

तुम्हें याद है बारिश की वह रात 
जब हम एकसाथ भीगे थे
और वो इक शाम जब बेमकसद
घूम रहे थे सड़कों पर रिक्शे में
या वो सुबह जब नींद नहीं थी आंखों में
और हम निकल गए थे सवेरे सवेरे
भोर की बाहों से निकले सूरज को ताकने

सच में, कितना बोझ छोड़ गई हो तुम
मेरे सीने पर
अब इसके भार से सांसें उखड़ रही हैं
तुम तो इसका दर्द समझती होगी
आखिर स्त्री हो तुम, स्त्री!!

©ABRAR 
  #abrarahmad 
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