किन्नर किस समूह में जाऊँ, क्या मैं बन जाऊं। नर हूँ या नारी, समाज हमे स्वीकार ना करती, क्या मैं अब ओ जाऊँ।। शिव ने भी तो सूरत बदला, पूजी दुनिया सारी, श्री कृष्ण ने मोहनी बनकर, सबका है मन मोहा। मैने ना अपराध है किया, वही जन्म है पायी। नही कोई सम्मान है करता, किसको व्यथा सुनाऊं, क्या मैं अब ओ जाऊँ।। बृहन्नला रूप में अर्जुन ने भी, किन्नर का दर्द समझा। ना कर इतनी घृणा मुझसे। मैं भी उसी कोख से जन्मी, जिससे जन्में तुम हो। नही कोई सम्मान है करता, किसको व्यथा सुनाऊं, क्या मैं अब ओ जाऊँ।। मातम नही मनाते हैं हम, दर्दनाक जीवन हमारी। दुःख की कमी नही है हममे, सूख से कोसों दूर, ऐसी श्राप है पायी। नही कोई सम्मान है करता, किसको व्यथा सुनाऊं, क्या मैं अब ओ जाऊँ।। ©Mahesh Kopa किन्नर