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हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें ज़लज़

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें 
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें 

तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है 
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें 

प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख 
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें 

              वसीम बरेलवी

©Sudhir Sky
  #mind thoughts
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