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दिल की उलझन सुलझा न सका, मैं क़रीब होकर भी उसके क़र

 दिल की उलझन सुलझा न सका,
मैं क़रीब होकर भी उसके क़रीब जा न सका..!

खो दिया मैंने ख़ुद को भी उसे पाने की ख़ातिर,
शातिर तक़दीर से जीत पा न सका..!

क्या होता है चाहतों का सिला,
मिला मुझे कुछ भी नहीं..!

यहीं कहीं मिलेगा वो की आस काश में,
एक वादा ख़ुद से मैं निभा न सका..!

हँसते चेहरे देखे ज़माने वालों ने सदा,
खुलकर ख़ुद को मैं रुला न सका..!

पहला प्रेम रहा आख़िरी मेरा और,
वो ही मैं कभी भुला न सका..!

चित्त चिंता में मरता रहा पल पल,
शान्ति से कभी ख़ुद को सुला न सका..!

©SHIVA KANT
  #dilkiuljhan💞

dilkiuljhan💞 #Poetry

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