फ़ैसला इश्क़ में क्या सनम हम करें दूर हो इन निगाहों से क्या ग़म करें, इक दिवानी तुम्हारी हुई जो यहाँ उस पे थोड़ा जाँ मेरे सितम कम करें, है नहीं तुम सा आशिक जहां में कोई गुलिस्तां लम्स से अपने शबनम करें, शाम को लौ जलेगी मिरी महफ़िल में जब जी ये लहज़ा ज़रा नर्म मद्धम करें। नमस्कार दोस्तो एक ग़ज़ल #ग़ज़ल #मतला #YourQuoteAndMine Collaborating with Mradul Joshi