जब समय की पूर्णता लिए प्रथम,श्री कली,रूप पाता है एकाकीपन का छटा प्रतीक्षा में सिमटी आभा आवरण से प्रस्फुटित हो अपना कथा कहता है कथा गुलाबी ही हो, आवश्यक नहीं,सौगंध नहीं धर्म के रंग में तय रूप पाता है गुलाब तो बस सुर्ख हो जाता है। सुबह की... मेरी वो , खराश़... सी आवाज़ मेरी वो धीमी सी आवाज़ तुमसे... कुछ कहना चाहती है । पलकें.. सूजी सी मेरी , अलसाई हो नज़रे मेरी , अधखुली आँखों से मेरी ,