देखो माटी का क्या हाल हुआ हरित आवरण बिन इसका रंग बेहाल हुआ अब मिट्टी हो गई बेसहारा बदरंग और बह जाती व गिरती बन भूस्खलन माटी में जड़ें वृक्षों की नहीं समाती अब इसमें मकानों के नींव डाली जाती अब जब नदियां बन बाढ़ कहर ढाती तब इंसान को प्रकृति की याद आती वृक्षों की सांसें कम इंसान की अधिक बढ़ रही गर्मी बन ग्लोबल वार्मिंग जलस्तर बढ़ जब सागर किनारों को साथ ले जाता फिर कुछ दिन अख़बारों में ये मुद्दा छा जाता मत भूल इंसान सृष्टि में अपना अस्तित्व कर पूरे प्रकृति के प्रति कर्तव्य मत फैला इस पृथ्वी में इतना ज़हर वरना ले डूबेगा सबको ये प्रकृति का कहर ।। ©rimjhim prakriti ka kahar #nojotohindi#hindi#poetry#kavita#nature#destruction#deforestation#soilerosion#floods#globalwarming#landslides