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ना जाने, कब साल बीत गया, आज ये आखरी दिन छा गया, क

ना जाने, कब साल बीत गया,
आज ये आखरी दिन छा गया, 
कभी उनके रूठने में तो,
कभी उनको मनाने में,
कभी उनसे नाराजगी के गम में
तो कभी उसकी खुशी की उंमग में।
ना जाने कब साल बीत गया,
आज ये आखरी दिन छा गया,
कभी यारो के  सदगों मे तो,
कभी खहिशों के दामनो में,
ना जाने कब परिन्दे पिंजरे से,
आजादी की और निकल चले,
ना जाने, कब साल बीत गया,
आज आखरी दान छा गया । ये कविता मैंने मेरे ferewell पर लिखी थी ।
ना जाने, कब साल बीत गया,
आज ये आखरी दिन छा गया, 
कभी उनके रूठने में तो,
कभी उनको मनाने में,
कभी उनसे नाराजगी के गम में
तो कभी उसकी खुशी की उंमग में।
ना जाने कब साल बीत गया,
आज ये आखरी दिन छा गया,
कभी यारो के  सदगों मे तो,
कभी खहिशों के दामनो में,
ना जाने कब परिन्दे पिंजरे से,
आजादी की और निकल चले,
ना जाने, कब साल बीत गया,
आज आखरी दान छा गया । ये कविता मैंने मेरे ferewell पर लिखी थी ।
mpraj6003291109864

Mp Raj

Bronze Star
New Creator