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"मैं कब जिया हूं ख़ुद के लिए, उम्र भर दूसरों के लि

"मैं कब जिया हूं ख़ुद के लिए, उम्र भर दूसरों के लिया
जीता रहा हूं मैं, ये मेरी कहानी नही हर किसी की
 कहानी है, जिंदगी अपने लिए हमने कब बितानी है "

क्योंकि.....

की तुम जब भी संवरे ख़ुद के लिए,
उम्मीद जगी की लोग तारीफ़ करें,
तुम जब भी जिए सराफत से, उम्मीद
जगी की लोग तुम्हें याद रखे, 
तुमने जब भी हाथ उठाए
किसी शख्स की मदद के लिए, 
उम्मीद जगी की वो
तुम्हारा उपकार माने, 
तुमने जब भी आशियां बनाया
खुद के लिए उमीद जगी, 
की लोग देख तारीफ करें 
तुमने जब भी अपनी, सुविधा के
 लिए वाहन लिया
उम्मीद जगी की लोग देख बधाई दे,
तुमने जब भी
कुछ नया किया उम्मीद दूसरों से ही लगाई ,
 जिंदगी
हमारी खुद की थी, "जी "किसी और के लिए रहे है
हम, सिवाय एक पल को छोड़ कर ,जब हमने 
 कभी रब को याद किया होगा,उस पल यकीनन
 हमने ख़ुद के लिए जिया होगा

©पथिक
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