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#OpenPoetry निकलकर धूप मे,सब छाव धुंडते है, सुकून

#OpenPoetry निकलकर धूप मे,सब छाव धुंडते है,
सुकून से जिने के लिए अपना गाव धुंडते है,
गाव मे सुकून था अपने,
शहर की भीड मे ये आज सोचते है,
सिमेंट के घरो मे,वो खुशबू मिट्टी की कहा से आयेगी
खुदगर्ज लोगो मे वो प्यार कहा से लायेगी,
अपनापन तो बस गाव मे था,
जहा यारो के यार मिला करते थे,
सुख दुःख मे साथ खिला करते थे,
वो पेडो के झुले अब गुम हो रहे है,
लोग धिरे-धिरे अपने गावो से दूर हो रहे है,
लेकिन अभी भी बुलाता है उन्हे वो गाव का आंगण,
वो बचपन की यादे, वो माँ बाप की आँखे,
 रस्ता देख रही है.. #OpenPoetry_निकलकर_धूप_में
#OpenPoetry निकलकर धूप मे,सब छाव धुंडते है,
सुकून से जिने के लिए अपना गाव धुंडते है,
गाव मे सुकून था अपने,
शहर की भीड मे ये आज सोचते है,
सिमेंट के घरो मे,वो खुशबू मिट्टी की कहा से आयेगी
खुदगर्ज लोगो मे वो प्यार कहा से लायेगी,
अपनापन तो बस गाव मे था,
जहा यारो के यार मिला करते थे,
सुख दुःख मे साथ खिला करते थे,
वो पेडो के झुले अब गुम हो रहे है,
लोग धिरे-धिरे अपने गावो से दूर हो रहे है,
लेकिन अभी भी बुलाता है उन्हे वो गाव का आंगण,
वो बचपन की यादे, वो माँ बाप की आँखे,
 रस्ता देख रही है.. #OpenPoetry_निकलकर_धूप_में
manojakale6508

Manoj A.Kale

New Creator