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ये वाकया कुछ दिन पहले का है | पेशे से मै एक शिक्षक

ये वाकया कुछ दिन पहले का है |
पेशे से मै एक शिक्षक हूँ | होली के उपलक्ष्य में हमारा विद्यालय चार दिनों के लिए बंद हुआ | अगर बारीकी से देखा जाए तो एक शिक्षक की ज़िन्दगी में वास्तविक अवकास उतना हीं दुर्लभ हैं जितना की चाँदनी रात में सितारे |
काफी हिम्मत कसने के बाद मैंने ये ठान लिया की इस अवकास में सिर्फ और सिर्फ आराम होगा और कुछ भी नहीं | सुबह से शाम तक की दिनचर्या मैंने बनायी | शिक्षक जो ठहरा, आराम के लिए भी एक योजना बनाने की ज़रूररत पड़ती है | और हाँ मैं एकलौता ऐसा बन्दा नहीं हूँ | कुछ शिक्षक तो ऐसे भी है की बगैर पाठ योजना के वो नहाने तक नही जाते | योजना के प्रथम चरण में आज पहले दिन मै घर से बाहर नहीं निकलने वाला था. इसके तहत मुझे बिस्तर छोड़े दो घंटे हो गए थे और मै यूँ हीं घर में इधर से उधर उठ-बैठ रहा था | मेरी पत्नी काफी देर से मेरा निरीक्षण कर रही थी | वैसे ये निरीक्षण हर वक़्त होते रहता है परन्तु आज वो कुछ विस्मय की स्थिति में थी और महिलाओं का विस्मय पुरुषों के लिए खतरे की घंटी होती है ये हर शादी शुदा आदमी भली भांति समझता है | अंततः वो मेरे करीब आयी | सिर पर हाथ रक्खा और पूछा- “सब ठीक है न? आज आप यही घर में घूम रहे है , आसमान सर पर नहीं लिए है | पागलों की तरह बडबडा भी नहीं रहे है | आज कोई कागज़ खोया नही है ना ही गूगल पर कुछ खोज-बीन चल रही है | सबसे बड़ी बात स्कूल वाले ग्रुप में कोई मेसेज भी नहीं पढ़ रहे है | नौकरी है भी या चली गयी ?”
आज उसके प्रश्नों से समझ में आया की सब मुझपे इतना तरस क्यों खाते थे | प्राइवेट नौकरी में आदमी घर में रहता है पर घर का नहीं रह पता – ये बात मैंने सुनी थी पर आज मै समझ भी गया | पर एक सच ये भी तो है कि जहाँ हमारी चुनी हुई सरकार हमें सौतेला समझती है वहां कोई तो है जो हमारे घरों में रोटी का इन्तेजाम कर दे रहा है | पर ये सब बाते कौन समझे और किसे समझाया जाये- दिल हल्का करके मैंने सोचा छुट्टी का मज़ा लिया जाये | मैंने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहा- “ देख यूँ बावली मत बन, आज अपने हाथों का बढ़िया गरमा गरम नाश्ता करा दो | परंपरागत तरीके से कुछ मध्यम कर्कश ध्वनि में बुदबुदाते हुए वह निकल गयी | एक घंटा भी नहीं बीता और रसोई से आवाज़ आई- “ बैठ जाईये, नाश्ता तैयार है | गरम गरम पूरी और छोले इतने स्वादिष्ठ लग रहे थे कि मैंने पाचनतंत्र की सारी सीमा रेखाएं लांघ दी | अंगुलियाँ चाटते हुए अचानक से मेरा ध्यान गया और मैंने पाया कि पत्नी साहिबा कमर पर हाथ रखे मुझे एक टक घूरे जा रही थी और अंततः बोल ही दिया- बस भी करो अब, आपके दो बच्चे भी हैं, उनके लिए भी कुछ बच जाये तो बेचारे खा लेंगे | जैसा तुम कहो मेरी जान ऐसा कहते हुए मैंने हाथ धोया | टीवी का रिमोट खोजने के लिए मै वहाँ से दुसरे हॉल में चला गया दोपहर, शाम, रात और अभी अगले तीन दिन के बाकी किस्से अगले भाग में |

©Aditya Sarswati #teacher'slife
ये वाकया कुछ दिन पहले का है |
पेशे से मै एक शिक्षक हूँ | होली के उपलक्ष्य में हमारा विद्यालय चार दिनों के लिए बंद हुआ | अगर बारीकी से देखा जाए तो एक शिक्षक की ज़िन्दगी में वास्तविक अवकास उतना हीं दुर्लभ हैं जितना की चाँदनी रात में सितारे |
काफी हिम्मत कसने के बाद मैंने ये ठान लिया की इस अवकास में सिर्फ और सिर्फ आराम होगा और कुछ भी नहीं | सुबह से शाम तक की दिनचर्या मैंने बनायी | शिक्षक जो ठहरा, आराम के लिए भी एक योजना बनाने की ज़रूररत पड़ती है | और हाँ मैं एकलौता ऐसा बन्दा नहीं हूँ | कुछ शिक्षक तो ऐसे भी है की बगैर पाठ योजना के वो नहाने तक नही जाते | योजना के प्रथम चरण में आज पहले दिन मै घर से बाहर नहीं निकलने वाला था. इसके तहत मुझे बिस्तर छोड़े दो घंटे हो गए थे और मै यूँ हीं घर में इधर से उधर उठ-बैठ रहा था | मेरी पत्नी काफी देर से मेरा निरीक्षण कर रही थी | वैसे ये निरीक्षण हर वक़्त होते रहता है परन्तु आज वो कुछ विस्मय की स्थिति में थी और महिलाओं का विस्मय पुरुषों के लिए खतरे की घंटी होती है ये हर शादी शुदा आदमी भली भांति समझता है | अंततः वो मेरे करीब आयी | सिर पर हाथ रक्खा और पूछा- “सब ठीक है न? आज आप यही घर में घूम रहे है , आसमान सर पर नहीं लिए है | पागलों की तरह बडबडा भी नहीं रहे है | आज कोई कागज़ खोया नही है ना ही गूगल पर कुछ खोज-बीन चल रही है | सबसे बड़ी बात स्कूल वाले ग्रुप में कोई मेसेज भी नहीं पढ़ रहे है | नौकरी है भी या चली गयी ?”
आज उसके प्रश्नों से समझ में आया की सब मुझपे इतना तरस क्यों खाते थे | प्राइवेट नौकरी में आदमी घर में रहता है पर घर का नहीं रह पता – ये बात मैंने सुनी थी पर आज मै समझ भी गया | पर एक सच ये भी तो है कि जहाँ हमारी चुनी हुई सरकार हमें सौतेला समझती है वहां कोई तो है जो हमारे घरों में रोटी का इन्तेजाम कर दे रहा है | पर ये सब बाते कौन समझे और किसे समझाया जाये- दिल हल्का करके मैंने सोचा छुट्टी का मज़ा लिया जाये | मैंने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहा- “ देख यूँ बावली मत बन, आज अपने हाथों का बढ़िया गरमा गरम नाश्ता करा दो | परंपरागत तरीके से कुछ मध्यम कर्कश ध्वनि में बुदबुदाते हुए वह निकल गयी | एक घंटा भी नहीं बीता और रसोई से आवाज़ आई- “ बैठ जाईये, नाश्ता तैयार है | गरम गरम पूरी और छोले इतने स्वादिष्ठ लग रहे थे कि मैंने पाचनतंत्र की सारी सीमा रेखाएं लांघ दी | अंगुलियाँ चाटते हुए अचानक से मेरा ध्यान गया और मैंने पाया कि पत्नी साहिबा कमर पर हाथ रखे मुझे एक टक घूरे जा रही थी और अंततः बोल ही दिया- बस भी करो अब, आपके दो बच्चे भी हैं, उनके लिए भी कुछ बच जाये तो बेचारे खा लेंगे | जैसा तुम कहो मेरी जान ऐसा कहते हुए मैंने हाथ धोया | टीवी का रिमोट खोजने के लिए मै वहाँ से दुसरे हॉल में चला गया दोपहर, शाम, रात और अभी अगले तीन दिन के बाकी किस्से अगले भाग में |

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