Nojoto: Largest Storytelling Platform

मैं खुद से बिछड़ा हूँ ऐसे जैसे नदी के दो किनारे मि

मैं खुद से बिछड़ा हूँ ऐसे
जैसे 
नदी के दो किनारे मिलते  नही है ।।

मैं खुद से टूटा हु ऐसे
जैसे
टहनी से गिरे पत्ते जुड़ते नही है ।।
 
हँसी भी चेहरे पर ऐसी है
जैसे 
रेगिस्तान मैं प्यासे को नदी सा दिख जाता  है। 

खुशियां नसीब में बस इतना ही टिक पाता है ।।
जैसे
जितनी कीमत पर किसान का अनाज बिक पाता है ।। #शैलाब
मैं खुद से बिछड़ा हूँ ऐसे
जैसे 
नदी के दो किनारे मिलते  नही है ।।

मैं खुद से टूटा हु ऐसे
जैसे
टहनी से गिरे पत्ते जुड़ते नही है ।।
 
हँसी भी चेहरे पर ऐसी है
जैसे 
रेगिस्तान मैं प्यासे को नदी सा दिख जाता  है। 

खुशियां नसीब में बस इतना ही टिक पाता है ।।
जैसे
जितनी कीमत पर किसान का अनाज बिक पाता है ।। #शैलाब