ना दर्द का डर, ना भोगने का डर, पित्र पक्ष के इस सफर में , नहीं रहा बदनाम होने का डर ।। मोक्ष की तलाश हुई खत्म, मोह से नाता तोड़ दिया, अब हर परिणाम से ,स्वम को अलग कर दिया।। हम हैं बूरे, हम हैं बूरे ,क्योंकि किसी कि चाही औलाद हम नहीं, फिर क्यों रखते हो आस अब, क्या बदनाम कर ने की वजह ये तो नहीं।। ना हम शुभ हैं,ना पाक हैं ,ना सफल और ना पश्यताप हैं पित्र दोष का अपराध ,अब मैंने अपने सर ले लिया, मैं कौन होती हूँ मैं कौन हूँ ,ये तो नहीं पता।। पर गर होती चाही औलाद तो ,अपनी माँ की चलती साँसो की मैं साक्षी होती।।। क्या सिद्ध करू क्या सिद्ध करू ,उन तिथियों को जो पिता की मौत से सन चूकी हैं। ,या शुक्र बनाऊँ उन सांसो को जो मेरे अभाव में चल रही हैं।। पीत्र दोष का हर पाप मैंने अब अपने सर ले लिया।।