मेरे आंगन में पेड़ की झुरमुट में, न जाने कितने पंक्षी उछलते हैं। सारा दिन उसी दरख़्त की छांव में, न जाने गिलहरियों के कितने बच्चे मचलते है। जीवन में भविष्य की चिंताओं से मुक्त, वर्तमान में जीते हैं। कितना अच्छा लगता है जब वो नल से, टपकती हुई छोटी बूंद को पीते हैं। कभी पेड़ की डाल पर, बैठने को लड़ते हैं। और कभी–कभी धान के दानों को, पाने के लिए झगड़ते हैं। कोई अस्तित्व की इस जंग में, हार नहीं मानता है। और फिर, दोबारा लड़ने की ठानता है। इतने झगड़ों के बाद, वो फिर सहचर हैं। एकता के संदर्भ में, वो मानव से बेहतर हैं।। ©Shreshth #कविता मेरी किताब मेरे अल्फाज।