मेरी आदतें मक्कार हैँ जो कभी ठहरती नहीं| किस चीज की आश हैँ,किस चीज की प्यास हैँ; आस और प्यास की नियत मे खोट है,मुझ मे खोट है में रंग हूं ;में रूप हूं!!में ख्वाब हूं;और वो नींद भी!! कभी तन्हाई भाती हैँ,कभी शोर में दिल झूमता हैँ ख्वाबों को पैदा करके नाम देना भूल जाती हूं पहँचान देना भूलजाती हूं जैसे कोई नाजायस औलाद हो!!और दफना देना चाहती हूं कभी खुद को, कभी किसी आस को|| सही और गलत की भी कुछ स्केल होना चाहिए मानलो PH स्केल की तरह,जो गलती हो जाये तोह माप निम्न हो जैसे acid तोह मालूम चले की नहीं यहाँ गलत जा रहे हो और ज्यादा हो तोह base मतलब सही जा रहे हो फिर और बिच में रुक जाये तोह इंसान neutral हो जाये..ना acid ना base ना सही ना गलत!!हर चेहरा यहाँ एक किताब मानो दूर से देखो तोह वो चाँद की तरह स्वच्छ, निर्मल जैसे खिल खिलाती नदी और बारीकी से हर पन्ने को पढोगे तोह ख्वाइश, आश, प्यास, तन्हाई, दर्द जिम्मेदारी, और कुछ हसीन लम्हात का बोझ लम्हात जो ठहरता नहीं| दर्द जो बिकता नहीं| खुशी जो टिकता नहीं| फिर भी सही और गलत की कसमकाश में,उलझा हर इंसान!! ©Nibedita behera Kavita Mehta Writer Abhay Priya Singh sakshi gupta...