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शिव- पार्वती के छोटे बेटे के रूप में पूजे जाने वाल

शिव- पार्वती के छोटे बेटे के रूप में पूजे जाने वाले गणपति रिद्धि-सिद्धि के स्वामी और शुभता की प्रतिष्ठा करने वाले देवता हैं। वे अपने परिवार के साथ कैलाश पर ही निवास करते हैं।उनके लिए माता-पिता से श्रेष्ठ कुछ और नहीं।कर्तव्य निभाने में इतने द्रण है कि स्वयं के पिता से भिड़ जाते हैं।परिणाम कुछ भी हो वो विनोदी हैं और प्रसन्नता का वितरण करते हैं।उन्हें मोदक प्रिय भी कहते हैं मीठा खाते और मीठा ही बोलते हैं।जो मीठा बोलते हैं उनको ही मङ्गल कार्यों में आगे किया जाता है।उनके मधुर स्वभाव के कारण ही वे प्रथम पूज्य हैं। #पाठकपुराण की ओर से आप सभी को गणेश जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं। मैं कामना करता हूँ कि शिव-पार्वती परिवार की कृपा आप सभी पर बनी रहे। आप सभी नीरोग और सुख प्राप्त करें। विघ्न विनाशक गणेश आपके जीवन में शुभता का प्रवेश करायें।
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हुलस रहा माँटी का कण-कण उमड़ रही रसधार है।
त्योहारों का देश हमारा हमको इससे प्यार है।
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बैसे तो साल भर हम व्रत ,पर्व, स्नान आदि के उत्साह और उल्लास में रहते ही हैं लेकिन-
सावन माह लगते ही उत्सव, त्योहार, मेले, लगना शुरू हो जाता है। और इन चातुर्मास में जितने धार्मिक अनुष्ठान होते हैं वो साल भर में नहीं हो पाते। हर उत्सव और अनुष्ठान का एक सिद्धांत है।
और यह त्रैत वाद से जुड़ा है- जिसमें-
शिव- पार्वती के छोटे बेटे के रूप में पूजे जाने वाले गणपति रिद्धि-सिद्धि के स्वामी और शुभता की प्रतिष्ठा करने वाले देवता हैं। वे अपने परिवार के साथ कैलाश पर ही निवास करते हैं।उनके लिए माता-पिता से श्रेष्ठ कुछ और नहीं।कर्तव्य निभाने में इतने द्रण है कि स्वयं के पिता से भिड़ जाते हैं।परिणाम कुछ भी हो वो विनोदी हैं और प्रसन्नता का वितरण करते हैं।उन्हें मोदक प्रिय भी कहते हैं मीठा खाते और मीठा ही बोलते हैं।जो मीठा बोलते हैं उनको ही मङ्गल कार्यों में आगे किया जाता है।उनके मधुर स्वभाव के कारण ही वे प्रथम पूज्य हैं। #पाठकपुराण की ओर से आप सभी को गणेश जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं। मैं कामना करता हूँ कि शिव-पार्वती परिवार की कृपा आप सभी पर बनी रहे। आप सभी नीरोग और सुख प्राप्त करें। विघ्न विनाशक गणेश आपके जीवन में शुभता का प्रवेश करायें।
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हुलस रहा माँटी का कण-कण उमड़ रही रसधार है।
त्योहारों का देश हमारा हमको इससे प्यार है।
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बैसे तो साल भर हम व्रत ,पर्व, स्नान आदि के उत्साह और उल्लास में रहते ही हैं लेकिन-
सावन माह लगते ही उत्सव, त्योहार, मेले, लगना शुरू हो जाता है। और इन चातुर्मास में जितने धार्मिक अनुष्ठान होते हैं वो साल भर में नहीं हो पाते। हर उत्सव और अनुष्ठान का एक सिद्धांत है।
और यह त्रैत वाद से जुड़ा है- जिसमें-