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यूँ ही बरकरार रहे कशिश इन फ़िज़ाओं की ये वादियाँ, ये

यूँ ही बरकरार रहे कशिश इन फ़िज़ाओं की
ये वादियाँ, ये बहार फिर लौटकर न जाए।
घुलती रहे खुशबू फ़िज़ा में मस्त हवाओं की
नदियों की धारा, ऊँचे पर्वतों के साये
लहरों की तरंग, जिंदगी में भरे ऐसा रंग जो
लौट कर ना जाए।

©manjeet
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