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किसी को पाना ग़र प्रेम है, तो खोना क्या प्रेम नहीं

किसी को पाना ग़र प्रेम है, तो खोना क्या प्रेम नहीं
प्रेम का गर अर्थ है कोई, तो बेअर्थ क्या प्रेम नहीं 
जिन शब्दों की जु़बां नहीं, उनमें क्या कोई गूंज नहीं
कदम ठहरे हैं ग़र कहीं, तो क्या रास्ते नहीं है कहीं 
वादे किए तो नहीं कभी, तो क्या बातों का कोई मोल नहीं 
जो नहीं है कहीं फिर भी, क्या उसका होना मु़मकिन नहीं

©Swati kashyap
  #मुमकिन