इंसानियत खतम हो रही है धीरे धीरे देखो ना हम इंसानों से,इंसानियत का धर्म निभाना सीखों अब तुम इन बेजुबानों ने से,मार देते हो तुम तू इनको सिर्फ अपना शौक पूरा करने को,फिर क्या इंसानियत निभाओगे अब तुम इंसानों से,जानवर कहते हो तुम इनको तुम कौन सा इंसान होने का कतृव्य निभाते हो, बदनाम तो यूही कर दिया है इनको तुमने,असली जानवर होने का करते तो इंसान हैं,देखो ना ये तुम्हारी एक छोटी सी चाहत पूरी करने के लिए,बस यूंही मारे जाते हैं देखो ना अब भी ये बेजुबान जानवर,बेकसूर होकर भी हमारी गलतियों के सजा पाते हैं।। जानवर होके भी ये इंसानियत का धर्म निभाते हैं।।