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कौन आएगा वहां, कोई न आया होगा बेशर्म हवाओं ने दरवा

कौन आएगा वहां, कोई न आया होगा
बेशर्म हवाओं ने दरवाजा खटखटाया होगा

यह उसका सिंगार और यूं सजना संवरना
सब है बेकार गर खत भी न आया होगा

वह नाराज़ तो है लेकिन इतना भी नहीं
उन दरख्तों को आंधियों ने गिराया होगा

अश्कों की नुमाइश से परहेज़ रहा उसको
बारिश ने ही ज़रूर वो दामन भिगाया होगा

कौन आएगा वहां कोई न आया होगा
बेशर्म हवाओं ने दरवाजा खटखटाया होगा

©कमल कांत
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