अब ये दिल लगता नहीं तुम्हारे बिना, लगाना पड़ता है। हा वो बात अलग है,मै खुश हूं तुम्हारे बिना भी, ये सबको दिखाना पड़ता है। मै अब भी समझता हूं, तुम सबसे बेहतर समझती हो मुझे। हा वो बात अलग है, मुझको याद करो तुम,ये तुमको याद दिलाना पड़ता है। जब कोई पूछता है तुम कौन हो मेरी, मै कहता हूं शरीक-ए-हयात है मेरी। हा वो बात अलग है, तुम्हें अपनी जिंदगी में शिरकत कराने के लिए हमें गैरों से शिफारिश लगाना पड़ता है। #हा_वो_बात_अलग_है Poem or Shayri 🙄 शरीक-ए-हयात: Wife शिरकत: participate