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बेहद की तलाश में हद की परिभाषा खो बैठते हैं सबकुछ

बेहद की तलाश में हद की परिभाषा खो बैठते हैं
सबकुछ पाकर भी खुश रहने का ठिकाना खो बैठते हैं
आधुनिकता की होड़ में अपना वजूद खो बैठते हैं
इंसानियत से होकर दूर ज़िन्दगी के मायने खो बैठते हैं

वक़्त भी चलता है, साँसे भी चलती है
सूरज भी उगता है, शामें भी ढ़लती है
इंसानियत की तस्वीर अब विकृत लगती है
इंसानों की नियति मौसमों-सी जो बदलती है
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बेहद की तलाश में हद की परिभाषा खो बैठते हैं
सबकुछ पाकर भी खुश रहने का ठिकाना खो बैठते हैं
आधुनिकता की होड़ में अपना वजूद खो बैठते हैं
इंसानियत से होकर दूर ज़िन्दगी के मायने खो बैठते हैं

वक़्त भी चलता है, साँसे भी चलती है
सूरज भी उगता है, शामें भी ढ़लती है
इंसानियत की तस्वीर अब विकृत लगती है
इंसानों की नियति मौसमों-सी जो बदलती है
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aparnasingh2535

Aparna Singh

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