जीवन की एक गली में, मैं तेरी गली का राही बन जाऊं क्या, तेरे मकान की दीवारों की, मैं उम्मीद देती खिडकी बन जाऊं क्या, तेरे घर के मंदिर में, मैं सुबह की मधुर घंटी बन जाऊं क्या, तेरे शयनकक्ष में, प्रभात वाली पर्दा बन जाऊं क्या, तेरे हाथ में लकीरों पर, मैं खुद उनमें लिख जाऊं क्या, मैं तेरे साथ रहकर, तेरा साथी बन जाऊं क्या, मैं तेरे दुखों में, एक मरहम बन जाऊं क्या, तू जब मायूस हो, मैं तेरी हिम्मत बन जाऊं क्या, तुम वायदे ना कर सको, मैं फिर भी तेरे चेहरे की मुस्कान बन जाऊं क्या, तू साखी बनकर रहना साथ मेरे, मैं जागृत हो 'उत्कर्ष' बन जाऊं क्या. ©Ankit verma 'utkarsh' #shivykarsh❤❤ AK S Sethi Ji