ग़र होता ये इत्तेफ़ाक़ तो ये कितना हसीं होता ! तुम जिस मोड़ से गुज़रे, मैं काश वहीं होता !! किरदार हम दोनों के आपस मे बदल जाते ! बहुत आरजू थी मेरी के ऐसा भी कहीं होता !! गर तुम मेरे होते तो मेरी बात और होती ! फिर तो आशियाना मेरा अर्श-ए-बरीं होता !! कुछ हो चला है ऐसा अब बेकसी का आलम ! तुम ख़्वाब में भी आ जाओ तो यकीं नहीं होता !! ©Tripathi Akash #bebasi_ka_aalam_kuch_esa_hai_ki