#OpenPoetry आप क्यूँ रोयेंगे मेरी खातिर फ़र्ज़ ये सारे इस ग़ुलाम के हैं दिन में सौ बार याद करता हूँ पासवर्ड सारे तेरे नाम के खुश हैं तुमको डिलीट करते हुए रो पडे हम ये ट्वीट करते हुए इश्क का खेल भी निराला है प्यारे लगते हो चीट करते हुए याद रखिएयेगा हाथ कांपेगे मेरा नंबर डिलीट करते हुए ये अलग बात की मुकद्दर नहीं बदला अपना. एक ही दर पर रहे दर नहीं बदला अपना इश्क़ का खेल है शतरंज नहीं है साहेब. मात खायी है मगर घर नहीं बदला अपना. जाने किस वक्त अचानक याद आ जाए उसे. मैने ये सोच के नंबर नहीं बदला अपना Han Han yar