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#OpenPoetry आप क्यूँ रोयेंगे मेरी खातिर फ़र्ज़ ये

#OpenPoetry आप क्यूँ रोयेंगे मेरी खातिर 
फ़र्ज़ ये सारे इस ग़ुलाम के हैं 
दिन में सौ बार याद करता हूँ 
पासवर्ड सारे तेरे नाम के 
खुश हैं तुमको डिलीट करते हुए 
रो पडे हम ये ट्वीट करते हुए 
इश्क का खेल भी निराला है 
प्यारे लगते हो चीट करते हुए          
याद रखिएयेगा हाथ कांपेगे 
मेरा नंबर डिलीट करते हुए      
ये अलग बात की मुकद्दर नहीं बदला अपना.                            एक ही दर पर रहे दर नहीं बदला अपना                               इश्क़ का खेल है शतरंज नहीं है साहेब.                               मात खायी है मगर घर नहीं बदला अपना.                                  जाने किस वक्त अचानक याद आ जाए उसे.                              मैने ये सोच के नंबर नहीं बदला अपना Han Han yar
#OpenPoetry आप क्यूँ रोयेंगे मेरी खातिर 
फ़र्ज़ ये सारे इस ग़ुलाम के हैं 
दिन में सौ बार याद करता हूँ 
पासवर्ड सारे तेरे नाम के 
खुश हैं तुमको डिलीट करते हुए 
रो पडे हम ये ट्वीट करते हुए 
इश्क का खेल भी निराला है 
प्यारे लगते हो चीट करते हुए          
याद रखिएयेगा हाथ कांपेगे 
मेरा नंबर डिलीट करते हुए      
ये अलग बात की मुकद्दर नहीं बदला अपना.                            एक ही दर पर रहे दर नहीं बदला अपना                               इश्क़ का खेल है शतरंज नहीं है साहेब.                               मात खायी है मगर घर नहीं बदला अपना.                                  जाने किस वक्त अचानक याद आ जाए उसे.                              मैने ये सोच के नंबर नहीं बदला अपना Han Han yar
akshitroyi9794

Akshit Royi

New Creator

Han Han yar #OpenPoetry