मै जैसी भी हूँ अच्छी हूँ । जमाने को क्या पड़ी है मै काली हूँ या गोरी हूँ। मै जैसी भी हूँ अच्छी हूँ। जमाना क्या कहेगा क्या साेचेगा अब नही है मुझे साेचना, मूझे है अब आगे बढ़ना। जमाने तूम ना कराे फिक्र मेरी । मै जैसी भी हूँ अच्छी हूँ। मै खूश हूँ मूझसे जलने वाले लाेग भी हैं इसाी जमाने मे। मूश्किल वक्त मे मज़े लेने वाले एै जमाने तू रहने दे,अच्छे वक्त भी मै अकेले जी लूगीं । मै जैसी भी हूँ अच्छी हूँ । जमाने काे क्या पड़ी है मै काली हूँ या गोरी हूँ। uzma Almas . हिन्दी कविता। #ShiningInDark