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मुद्दतों से नाराज़ रहीं, मुझसे क़ायनात की रहमतें,

 मुद्दतों से नाराज़ रहीं, मुझसे क़ायनात की रहमतें,
 कश्मकश, जद्दोजहद,बेबसी और क़हर हूँ मैं।

खोये हुए से पल हैं सारे,झुलसी हुई सी हसरतें,
मुसलसल बेक़रारी में जलता हुआ इक शरर हूँ मैं।

न सुकून वाली सुबह हुई, न राहतों की शाम मिली,
चिलचिलाती धूप में तपता हुआ दोपहर हूँ मैं।

मिला ही नहीं कभी मुझे ज़िंदगी का क़ाफिया,
न मिसरा, न मतला, न रदीफ़, ना ही बहर हूँ मैं।

©Kumar Saurabh
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