जो चाहते ही नहीं दो घूंट आग को पीकर बाज़ार में गुलफिशां बेचैनी से बेचूँ, वो गर्मजोशी क्यूँ सिखाते हैं, मैं तो कबका मक़बरा हूँ, भला रेत तो गर्म-सर्द तो देखूँ, मगर राख़ कैसे गर्म करूँ....— % & #शायरी_के_अल्फ़ाज़ #शायरी #योरकोट_दीदी #योरकोटबाबा