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दर-ब-दर ढूंढ़ रहा है पंछी अपने पानी को कितना मुश्कि

दर-ब-दर ढूंढ़ रहा है पंछी अपने पानी को
कितना मुश्किल है पूरी करना लफ्ज़ो से इस अधूरी कहानी को

रेत ही रेत फैली हो जैसे,रेत की चलती आंधी हो
रेत से ही शुरूआत हुई हो,रेत ही आखिरी निशानी हो

रूठी-रूठी घटा है लगती,रूठा मेरे हिस्से का बादल है
हवा भी उल्टी बह रही है,दिल भी अश्कों से घायल है

ना जाने किसकी नज़र लगी है,ना जाने कैसा ये मौसम है
ज़हर भी पानी लगने लगा है,बेताबियों का आलम है

मान लिया है मैने भी अब ये जीवन की यही कहानी है
ना प्यास बुझी है,ना आग बुझी है, कैसी ये मनमानी है

हाथ दुआ में उठने लगे हैं ये रिश्ता भी शायद रूहानी है
वो बूंद बनकर मुझपे बरस रहा है,जो तेरे हिस्से का पानी है...

© abhishek trehan







 #दर-ब-दर #पंछी #पानी #रेत #yqbaba #yqdidi #yqaestheticthoughts #yqrestzone
दर-ब-दर ढूंढ़ रहा है पंछी अपने पानी को
कितना मुश्किल है पूरी करना लफ्ज़ो से इस अधूरी कहानी को

रेत ही रेत फैली हो जैसे,रेत की चलती आंधी हो
रेत से ही शुरूआत हुई हो,रेत ही आखिरी निशानी हो

रूठी-रूठी घटा है लगती,रूठा मेरे हिस्से का बादल है
हवा भी उल्टी बह रही है,दिल भी अश्कों से घायल है

ना जाने किसकी नज़र लगी है,ना जाने कैसा ये मौसम है
ज़हर भी पानी लगने लगा है,बेताबियों का आलम है

मान लिया है मैने भी अब ये जीवन की यही कहानी है
ना प्यास बुझी है,ना आग बुझी है, कैसी ये मनमानी है

हाथ दुआ में उठने लगे हैं ये रिश्ता भी शायद रूहानी है
वो बूंद बनकर मुझपे बरस रहा है,जो तेरे हिस्से का पानी है...

© abhishek trehan







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