होकर भी दूर मुझसे कुछ ऐसे तुम जुड़े हो दूर ढूंढ़ती हैं तुमको नज़रें नज़दीक तुम खड़े हो अगर सिर्फ़ ख़्वाब होते तो और बात होती उन ख्वाहिशों का क्या करूं मैं जिन्हें इल्तिजा मानता हूं ज़माने की हर ख़ुशी पर एक तेरी कमी है भारी उसे कैसे भूल जाऊं जिसे ख़ुदा मानता हूं... *इल्तिजा- प्रार्थना © abhishek trehan 🎀 Challenge-241 #collabwithकोराकाग़ज़ 💖 Happy Fathers Day 💖 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।